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कुवैत में खेती के लिए भारत से जाएगा 192 मीट्रिक टन गाय का गोबर

कुवैत में खेती के लिए भारत से जाएगा 192 मीट्रिक टन गाय का गोबर

गोवंश पालकों के लिए खुशखबरी - कुवैत में खेती के लिए भारत से जाएगा १९२ मीट्रिक टन गाय का गोबर

नई दिल्ली। गोवंश पालकों के लिए खुशखबरी है। अब गोवंश का गोबर बेकार नहीं जाएगा। सात समुंदर पार भी गोवंश के गोबर को अब तवज्जो मिलेगी। अब पशुपालकों को गाय के गोबर की उपयोगिता समझनी पड़ेगी। पहली बार देश से 192 मीट्रिक टन गोवंश का गोबर कुवैत में खेती के लिए जाएगा। गोबर को पैक करके कंटेनर के जरिए 15 जून से भेजना शुरू किया जाएगा। सांगानेर स्थित श्री पिंजरापोल गौशाला के सनराइज ऑर्गेनिक पार्क (
sunrise organic park) में इसकी सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं।

कुवैत में जैविक खेती मिशन की शुरुआत होने जा रही है।

भारतीय जैविक किसान उत्पादक संघ (Organic Farmer Producer Association of India- OFPAI) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अतुल गुप्ता ने बताया कि जैविक खेती उत्पादन गो सरंक्षण अभियान का ही नतीजा है। जिसकी शुरुआत हो चुकी है। पहली खेप में 15 जून को कनकपुरा रेलवे स्टेशन से कंटेनर रवाना होंगे। श्री गुप्ता ने बताया कि कुवैत के कृषि विशेषज्ञों के अध्ययन के बाद फसलों के लिए गाय का गोबर बेहद उपयोगी माना गया है। इससे न केवल फसल उत्पादन में बढ़ोतरी होती है, बल्कि जैविक उत्पादों में स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर देखने को मिलता है। सनराइज एग्रीलैंड डवलेपमेंट को यह जिम्मेदारी मिलना देश के लिए गर्व की बात है।

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राज्य सरकारों की भी करनी चाहिए पहल

- गाय के गोबर को उपयोग में लेने के लिए राज्य सरकारों को भी पहल करनी चाहिए। जिससे खेती-किसानी और आम नागरिकों को फायदा होगा। साथ ही स्वास्थ्यवर्धक फसलों का उत्पादन होगा। प्राचीन युग से पौधों व फसल उत्पादन में खाद का महत्वपूर्ण उपयोग होता हैं। गोबर के एंटीडियोएक्टिव एवं एंटीथर्मल गुण होने के साथ-साथ 16 प्रकार के उपयोगी खनिज तत्व भी पाए जाते हैं। गोबर इसमें बहुत महत्वपूर्ण है। सभी राज्य सरकारों को इसका फायदा लेना चाहिए।

गाय के गोबर का उपयोग

- प्रोडक्ट विवरण पारंपरिक भारतीय घरों में गाय के गोबर के केक का उपयोग यज्ञ, समारोह, अनुष्ठान आदि के लिए किया जाता है। इसका उपयोग हवा को शुद्ध करने के लिए किया जाता है क्योंकि इसे घी के साथ जलते समय ऑक्सीजन मुक्त करने के लिए कहा जाता है। गाय के गोबर को उर्वरक के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। ये भी पढ़े : सीखें वर्मी कंपोस्ट खाद बनाना 1- बायोगैस, गोबर गैस : गैस और बिजली संकट के दौर में गांवों में आजकल गोबर गैस प्लांट लगाए जाने का प्रचलन चल पड़ा है। पेट्रोल, डीजल, कोयला व गैस तो सब प्राकृतिक स्रोत हैं, किंतु यह बायोगैस तो कभी न समाप्त होने वाला स्रोत है। जब तक गौवंश है, अब तक हमें यह ऊर्जा मिलती रहेगी। एक प्लांट से करीब 7 करोड़ टन लकड़ी बचाई जा सकती है जिससे करीब साढ़े 3 करोड़ पेड़ों को जीवनदान दिया जा सकता है। साथ ही करीब 3 करोड़ टन उत्सर्जित कार्बन डाई ऑक्साइड को भी रोका जा सकता है। 2- गोबर की खाद : गोबर गैस संयंत्र में गैस प्राप्ति के बाद बचे पदार्थ का उपयोग खेती के लिए जैविक खाद बनाने में किया जाता है। खेती के लिए भारतीय गाय का गोबर अमृत समान माना जाता था। इसी अमृत के कारण भारत भूमि सहस्रों वर्षों से सोना उगलती आ रही है। गोबर फसलों के लिए बहुत उपयोगी कीटनाशक सिद्ध हुए हैं। कीटनाशक के रूप में गोबर और गौमूत्र के इस्तेमाल के लिए अनुसंधान केंद्र खोले जा सकते हैं, क्योंकि इनमें रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभावों के बिना खेतिहर उत्पादन बढ़ाने की अपार क्षमता है। इसके बैक्टीरिया अन्य कई जटिल रोगों में भी फायदेमंद होते हैं। ये भी पढ़े : सीखें नादेप विधि से खाद बनाना 3- गौमूत्र अपने आस-पास के वातावरण को भी शुद्ध रखता है। कृषि में रासायनिक खाद्य और कीटनाशक पदार्थ की जगह गाय का गोबर इस्तेमाल करने से जहां भूमि की उर्वरता बनी रहती है, वहीं उत्पादन भी अधिक होता है। दूसरी ओर पैदा की जा रही सब्जी, फल या अनाज की फसल की गुणवत्ता भी बनी रहती है। जुताई करते समय गिरने वाले गोबर और गौमूत्र से भूमि में स्वतः खाद डलती जाती है। 4- कृषि में रासायनिक खाद्य और कीटनाशक पदार्थ की जगह गाय का गोबर इस्तेमाल करने से जहां भूमि की उर्वरता बनी रहती है, वहीं उत्पादन भी अधिक होता है। दूसरी ओर पैदा की जा रही सब्जी, फल या अनाज की फसल की गुणवत्ता भी बनी रहती है। जुताई करते समय गिरने वाले गोबर और गौमूत्र से भूमि में स्वतः खाद डलती जाती है। 5- प्रकृति के 99% कीट प्रणाली के लिए लाभदायक हैं। गौमूत्र या खमीर हुए छाछ से बने कीटनाशक इन सहायक कीटों को प्रभावित नहीं करते। एक गाय का गोबर 7 एकड़ भूमि को खाद और मूत्र 100 एकड़ भूमि की फसल को कीटों से बचा सकता है। केवल 40 करोड़ गौवंश के गोबर व मूत्र से भारत में 84 लाख एकड़ भूमि को उपजाऊ बनाया जा सकता है। 6- गाय के गोबर का चर्म रोगों में उपचारीय महत्व सर्वविदित है। प्राचीनकाल में मकानों की दीवारों और भूमि को गाय के गोबर से लीपा-पोता जाता था। यह गोबर जहां दीवारों को मजबूत बनाता था वहीं यह घरों पर परजीवियों, मच्छर और कीटाणुओं के हमले भी रोकता था। आज भी गांवों में गाय के गोबर का प्रयोग चूल्हे बनाने, आंगन लीपने एवं मंगल कार्यों में लिया जाता है। 7- गोबर के कंडे या उपले : वैज्ञानिक कहते हैं कि गाय के गोबर में विटामिन बी-12 प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह रेडियोधर्मिता को भी सोख लेता है। आम मान्यता है कि गाय के गोबर के कंडे से धुआं करने पर कीटाणु, मच्छर आदि भाग जाते हैं तथा दुर्गंध का नाश हो जाता है। कंडे पर रोटी और बाटी को सेंका जा सकता है। 8- गोबर का पाउडर के रूप में खजूर की फसल में इस्तेमाल करने से फल के आकार में वृद्धि के साथ-साथ उत्पादन में भी बढ़ोतरी होती है।

भारत मे 30% गोबर से बनते हैं उपले

- भारत में 30% गोबर से उपले बनते हैं। जो अधिकांश ग्रामीण अंचल में तैयार किए जाते हैं। इन उपलों को आग जलाने के लिए उपयोग में लिया जाता है। जबकि ब्रिटेन में हर वर्ष 16 लाख यूनिट बिजली का उत्पादन किया जाता है। वहीं चीन में डेढ़ करोड़ परिवारों को घरेलू ऊर्जा के लिए गोबर गैस की आपूर्ति की जाती है। अमेरिका, नेपाल, फिलीपींस तथा दक्षिणी कोरिया ने भारत से जैविक खाद मंगवाना शुरू कर दिया है। -------- लोकेन्द्र नरवार
गाय के गोबर से बन रहे सीमेंट और ईंट, घर बनाकर किसान कर रहा लाखों की कमाई

गाय के गोबर से बन रहे सीमेंट और ईंट, घर बनाकर किसान कर रहा लाखों की कमाई

रोहतक। भले ही आज गोवंश की दुर्दशा हो रही है, गोवंश दर-दर की ठोकर खा रहे हैं। लेकिन गोवंश कितना उपयोगी होता है, यह हर कोई नहीं जानता। आप जानकर हैरान हो जाएंगे कि गाय के गोबर से सीमेंट, ईंट और पेंट बनाकर एक किसान लाखों रुपए की कमाई कर रहा है। हरियाणा के रोहतक जिले के मदीना गांव के रहने वाले किसान शिवदर्शन मलिक पिछले 6 सालों से गोबर से इको फ्रेंडली सीमेंट, पेंट और ईंटें बनाकर बेच रहे हैं। और सालाना लाखों रुपए की कमाई कर रहे हैं।

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  किसान परिवार में जन्मे शिवदर्शन ने गांव के स्कूल से ही प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की है। वह अमेरिका और इंग्लैंड में इको फ्रेंडली घर बनाने के तरीका सीख चुके हैं। इसके बाद नौकरी छोड़कर शिवदर्शन ने यह तय किया कि अब गांव के लोगों को आर्थिक रूप से मजबूत करना है। गांव वालों को रोजगार दिलाना है। शिवदर्शन अपने प्रोडक्ट बेचकर हर साल 50 से 55 लाख रुपए तक की कमाई कर रहे हैं।

साल 2015-16 में शुरू किया था काम

- किसान शिवदर्शन साल 2015-16 में यह काम प्रोफेशनल लेबल पर शुरू किया था। गोबर से सीमेंट तैयार करने के बाद शिवदर्शन ने सबसे पहले खुद इसका इस्तेमाल किया। और अपने गांव के लोगों को भी दिया। इसके बाद धीरे-धीरे इसका व्यापक स्तर पर व्यापार शुरू किया गया।

गोशाला की स्थिति में किया सुधार

- रोहतक के एक कॉलेज में बतौर प्रधानाध्यापक काम करने के कुछ महीने बाद ही डॉ. शिवदर्शन मलिक ने गोशाला शूरू की। साल 2018 में अपने प्रोडक्ट को बढाने के लिए गोशाला की स्थिति में भी बड़े स्तर पर सुधार किया। उनका यह उपयोग काफी सफल रहा।

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इन राज्यों में भेजी जा रहीं ईंट और सीमेंट

- इस साल शिवदर्शन ने 5 हजार टन सीमेंट की मार्केटिंग करने के अलावा पेंट और ईंट की भी अच्छी खासी बिक्री की है। शिवदर्शन ने हरियाणा के अलावा यह प्रोडक्ट बिहार, राजस्थान, झारखंड व महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में भेजा है। ----- लोकेन्द्र नरवार

छत्तीसगढ़ की राह चला कर्नाटक, गौमूत्र व गाय का गोबर बेच किसान होंगे मालामाल!

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गौपालन को बढ़ावा देने एवं किसानों को अतिरिक्त आय का जरिया प्रदान करने के लिए कर्नाटक सरकार ने गौवंश पालकों से
गौमूत्र या गोमूत्र (गाय का मूत्र) (Cow Urine) एवं गाय का गोबर (Cow Dung) खरीदने का निर्णय लिया है। आपको ज्ञात हो छत्तीसगढ़ सरकार भी किसानों से गौमूत्र खरीदकर उन्हें लाभ प्रदान कर रही है।

अतिरिक्त आय प्रदान करना लक्ष्य

कर्नाटक राज्य पशुपालन विभाग किसानों की आय में बढ़ोत्तरी के लिए प्रयासरत है। किसानों की आय मेें वृद्धि हो, इसके लिए कृषि आय से जुड़े आय के तमाम विकल्पों के लिए सरकार प्रोत्साहन एवं मदद प्रदान कर रही है। प्रदेश के गौपालक किसानों को गाय के दूध के अलावा भी अतिरिक्त आय मिल सके, इसके लिए किसानों से गोमूत्र और गोबर खरीदने की योजना कर्नाटक राज्य सरकार ने बनाई है।


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गौशालाओं की मदद

राज्य सरकार ने किसानों से गौमूत्र एवं गोबर खरीदने के लिए विशिष्ट योजना बनाई है। इस प्लान के तहत योजना की शुरुआत में प्रस्तावित गौशालाओं की मदद से किसानों से गौमूत्र एवं गाय के गोबर की खरीद की जाएगी। कर्नाटक सरकार इस समय कुछ निजी गौशालाओं का वित्त पोषण करती है। इसके अलावा राज्य सरकार ने इस अभिनव योजना के लिए आगामी दिनों में प्रदेश में गौशालाओं (Cow Shed) के विस्तार की योजना बनाई है। इसके तहत प्रदेश में 100 गौशाला (Cow Shed) बनाने का सरकार का लक्ष्य है।


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शुरू हो चुका है कार्य

लक्ष्य निर्धारित गौशालाओं को बनाने के लिए विभाग ने जिलों में भूमि चिह्नित की है। योजना के अनुसार चराई के लिए पृथक गौशाला बनाने का निर्णय लिया गया है।

गोबर एवं गौमूत्र का उपयोग

किसानों से क्रय किए गए गोबर और गोमूत्र से राज्य में कई तरह के उपयोगी उपोत्पाद बनाए जाएंगे। आमजन को भी गोबर-गौमूत्र निर्मित जीवन रक्षक इन उत्पादों के उपयोग के लिए मेलों, प्रदर्शनियों के जरिये जागरूक किया जाएगा। सरकार का मानना है कि, कृषि आधारित इस अभिनव पहल से प्रदेश में रोजगार के नए अवसर कृषि से इतर दूसरे लोगों को भी मिल सकेंगे।


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छत्तीसगढ़ सरकार ने किया प्रेरित

आपको बता दें, छत्तीसगढ़ में सरकार ने इस दिशा में पहल शुरू की थी। छत्तीसगढ़ में गौधन न्याय योजना के तहत, गोबर और गौमूत्र की खरीद कर सरकार किसानों को लाभ के अवसर प्रदान कर रही है। इस योजना के अनुसार छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रदेश के गौपालकों से चार रुपए प्रति लीटर की दर से गोमूत्र खरीदने का निर्णय लिया है। इस पहल के अलावा छत्तीसगढ़ राज्य में पहले से ही राज्य सरकार द्वारा पशुपालकों से दो रुपए प्रति किलो की दर से गाय का गोबर (Cow Dung) खरीदा जा रहा है। प्रदेश सरकार की इस पहल से न केवल पशु पालकों का गौपालन के प्रति रुझान बढ़ा है, बल्कि, गौपालन से पशु पालकों की कमाई में अतिरिक्त इजाफा भी देखने को मिला है।


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पशुपालन राज्य मंत्री प्रभु चव्हाण के हवाले से जारी मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, निजी मठ और संगठन राज्य में गौशाला का संचालन कर गौसेवा करते हैं। इन संगठनों द्वारा गोमूत्र और गाय के गोबर से बायो-गैस, दीया, शैंपू, कीटनाशक, औषधि जैसे कई जीवनोपयोगी उत्पाद बनाए जाते हैं। पशुपालन राज्य मंत्री ने इस दिशा में हाथ बंटाने की बात कही।

छग मॉडल से लेंगे प्रेरणा

उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा लागू की गई योजना का अध्ययन कर उससे सीख लेने की बात कही। प्रभु चव्हाण ने बताया कि, कर्नाटक में गौमूत्र एवं गाय के गोबर से जुड़ी योजना को लागू करने के पहले छत्तीसगढ़ के अनुभवों का अध्ययन किया जाएगा। मंत्री के अनुसार उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र राज्य में किए जा रहे जैव ईंधन (Bio Fuel) के प्रयोग भी काफी प्रभावकारी हैें। उन्होंने महाराष्ट्र के किन्नरी मठ में गोबर औऱ गौमूत्र से बनाए जाने वाले 35 उत्पादों से मिलने वाले लाभों का भी जिक्र मीडिया से एक चर्चा में किया। प्रभु चव्हाण ने योजना को फिलहाल शुरुआती चरण में होना बताकर, इसके विस्तार के लिए जल्द ही मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई से चर्चा करने की बात कही।
गाय के गोबर से किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए मोदी सरकार ने उठाया कदम

गाय के गोबर से किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए मोदी सरकार ने उठाया कदम

नई दिल्ली। केन्द्र की मोदी सरकार लगातार किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए नए नए प्रयोग कर रही है। अब मोदी सरकार ने एक महत्वपूर्ण योजना बनाई है। 

योजना के तहत गाय के गोबर को बायोगैस के रूप में प्रयोग किया जाएगा, जिससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी। पूरे भारत वर्ष में तकरीबन 30 करोड़ मवेशी हैं और घरेलू गैस की लगभग 50 फीसदी आवश्यकता, गाय के गोबर (Cow Dung) से बनी बायोगैस से पूरी हो सकती है। 

इनमें कुछ हिस्सा एनपीके उर्वरक (NPK - Nitrogen, Phosphorus and Potassium) में बदला जा सकता है। उधर सरकार की प्राथमिकता के अनुरूप गाय के गोबर के मुद्रीकरण से डेयरी किसानों की आमदनी बढ़ाने की संभावनाएं बढ़ेंगी।

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सरकार ने डेयरी किसानों की आय बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) की एक नई सहायक कंपनी एनडीडीबी मृदा लिमिटेड (NDDB MRIDA) का शुभारंभ किया है, जिसके तहत केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय को एक वैधानिक स्थान मिलेगा। 

दूध, डेयरी उत्पाद, खाद्य तेल और फलों व सब्जियों का निर्माण, विपणन और बिक्री करने वाले किसानों को इसका फायदा मिलेगा। 

केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री, श्री पुरुषोत्तम रूपाला ने खाद प्रबंधन के लिए एनडीडीबी की सहायक कंपनी एनडीडीबी एमआरआईडीए लिमिटेड का लोकार्पण किया - इस प्रेस रिलीज़ (Press Release) का पूरा दस्तावेज पढ़ने के लिए, यहां क्लिक करें

कैसे बनेगी गाय के गोबर से बायोगैस

गाय के गोबर से बायोगैस बनाने के लिए सबसे पहले पशुओं से प्रतिदिन उपलब्ध गोबर को इकट्ठा करना होता है, जो गोबर की मात्रा तथा गैस की संभावित खपत के आधार पर होगा। 

सरल तरीके से माना जाए तो, संयंत्र में एक घन मीटर बायोगैस प्राप्त करने के लिए गोबर 25 किग्रा प्रति घन मीटर क्षमता के हिसाब से प्रतिदिन डालना जरूरी है, जिसका औसत प्रति पशु और प्रतिदिन के हिसाब से डालना चाहिए।

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बायोगैस बनाने में कितना समय लगेगा

बायोगैस प्लांट (Biogas Plant) या गोबर गैस प्लांट लगवाने के लिए आपको सबसे पहले कृषि विभाग में आवेदन पत्र दाखिल करना चाहिए। इसके बाद कृषि विभाग अपनी टीम भेजकर अच्छा प्लांट तैयार करेंगे। 

करीब 5 से 7 दिन के अंदर यह प्लांट तैयार हो जाता है। इसके बाद इसमें 50 फीसदी गोबर और 50 फीसदी पानी भरा जाता है। कुछ समय बाद ही इसमें बैक्टीरिया एक्टिव हो जाते हैं और ऑक्सीजन के अभाव में मीथेन (Methane) गैस बनना शुरू हो जाती है।

गाय के गोबर से बनाए जा रहे हैं कई तरह के इको फ्रेंडली प्रोडक्ट, आप भी कमा सकते हैं अच्छा खास मुनाफा

गाय के गोबर से बनाए जा रहे हैं कई तरह के इको फ्रेंडली प्रोडक्ट, आप भी कमा सकते हैं अच्छा खास मुनाफा

गाय को बहुत ही उपयोगी माना गया है और साथ ही गोमूत्र को बहुत सी लाइलाज बीमारियों का इलाज भी कहा गया है। आजकल गोमूत्र के साथ-साथ गाय के गोबर का इस्तेमाल भी कई तरह की चीजों में किया जा रहा है। हाल ही में एक रिपोर्ट के अनुसार गाय के गोबर से बने हुए घर में ऑटोमेटिक रेडिएशन का असर नहीं पड़ता है। गाय के गोबर का इस्तेमाल भी रसोई गैस से लेकर देसी खाद और जैव उर्वरक बनाने में किया जा रहा है। इससे पेंट, पेपर, बैग, ईंट, गौकाष्ठ लकड़ी और दंत मंजन तक बनाए जा रहे हैं। एक अकेली गाय प्राकृतिक खेती के खर्च का आधा कर देती है। यदि आप भी गाय पालते हैं, तो इसके दूध के साथ-साथ गोबर और गौमूत्र को बेचकर अच्छा पैसा कमा सकते हैं।

गोबर से ऑर्गेनिक पेंट (Cow Dung Organic Paint)

पुराने जमाने में घरों को गाय के गोबर से लीपा जाता था। इससे घर ठंडा भी रहता है और साथ ही कीट पतंग भी घर में नहीं आते हैं। भैंस और विदेशी, ब्राजीलियन, जर्सी नस्लों के गोबर में 50 से 70 लाख बैक्टीरिया हैं, लेकिन देसी गाय के एक ग्राम गोबर में 3 से 5 करोड़ बैक्टीरिया मौजूद हैं, जो घर को सुरक्षित रखते हैं। साइंस ने भी ऐसा मानना है, कि गाय के गोबर का इस्तेमाल करने से घरों में कीट पतंग नहीं आते हैं। अब इसी विज्ञान के मद्देनजर गोबर से ऑर्गेनिक पेंट (Organic Paint) बनाया जा रहा है। छत्तीसगढ़ के गौठानों में ना सिर्फ फुली ऑर्गेनिक पेंट (Organic Paint) का उत्पादन हो रहा है। बल्कि बाजार में यह पेंट मल्टीनेशनल कंपनियों के पेंट से सस्ता भी बिक रहा है।
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इसके अलावा खादी इंडिया ने भी गोबर से बना हुआ वैदिक पेंट लॉन्च किया है। इसके अलावा, इस गोबर से पेपर, बैग, मैट से लेकर ईंट समेत कई इको-फ्रैंडली प्रोडक्ट लॉन्च किए जा चुके हैं, जो कैमिकल प्रोडक्ट्स का अच्छा विकल्प हैं।

खेती से लेकर रसोई गैस का इंतजाम

हम सभी जानते हैं, कि केमिकल के बढ़ते हुए इस्तेमाल से जमीन बंजर हो रही है। इनका स्वास्थ्य पर भी बहुत बुरा असर पड़ता है। इस समस्या को खत्म करने के लिए किसानों को जीरो बजट प्राकृतिक खेती करने के लिए प्रेरित किया जाता है। जिसमें पूरी तरह से जैविक खाद का इस्तेमाल किया जाता है, जो गोबर और गोमूत्र से बनाई जाती है। इस कार्य को पूरा करने के लिए कई राज्य सरकारें किसानों को गाय उपलब्ध करवा रही है। साथ ही, ज्यादा से ज्यादा गाय पालने के लिए प्रेरित कर रही है। साथ ही किसानों को गाय का दूध बेचकर भी अच्छी आमदनी मिल जाती है। यदि आप पशुपालक हैं और खुद का डेयरी फार्म चलाते हैं, तो एक बायोगैस प्लांट (Biogas Plant) भी लगा सकते हैं, जिससे पूरे गांव को फ्री में रसोई गैस मिल सकती है।

कागज और कैरी बैग

आपको यह जानकर बहुत हैरानी होगी कि भारत में गोबर से एक बहुत ही मजबूत कागज और कैरी बैग भी तैयार किया जा रहा है। यह जयपुर स्थित कुमारप्पा नेशनल हैंडमेड पेपर इंस्टीट्यूट के प्रयासों का नतीजा है। इस संस्थान में गाय के गोबर से कागज बनाने का तरीका सिखाया जाता है। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम’ से जोड़कर लोगों को इस तरह के उत्पाद बनाने के लिए जागरूक भी किया जाता है। यह पर्यावरण के लिए भी अच्छा है। साथ ही, ग्रामीण लोगों को रोजगार देने में भी एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम साबित हो रहा है।

रेडिएशन कम करने वाले स्टीकर

रिपोर्ट की मानें, तो गोबर से इस तरह के स्टीकर बनाए जा रहे हैं। जो मोबाइल के रेडिएशन कम करने की ताकत रखते हैं। साथ ही, गोबर से अलग अलग तरह की माला बनाई जा रही है। जो सन आयु संबंधित बीमारियों से राहत दे रहे हैं। जहां गोबर से तैयार दंज मंजन को मुंह के पायरिया को खत्म करने में प्रभावी बताया जा रहा है। तो वहीं इससे बने साबुन को स्किन एलर्जी में लाभकारी बताया जा रहा है। इसके अलावा, दीवाली पर गोबर से बने दिए, मूर्तियां भी काफी चर्चाओं में रहती हैं। त्यौहार आते ही इनकी मार्केटिंग भी खूब अच्छी हो जाती है।
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गौमूत्र से ही बन रही है औषधी, कीटनाशक और फिनाइल

आयुर्वेद में गाय के मूत्र को संजीवनी समान बताया गया है। बहुत सी आयुर्वेदिक संस्थानों ने तो गोमूत्र को कैंसर का सफल इलाज भी बताया है। इसमें बहुत से औषधीय गुण होते हैं, जो पेट और चर्म रोग संबंधी कई तरह की बीमारियों को खत्म कर सकते हैं। इसके अलावा गोमूत्र को पीलिया, सांस की बीमारी, आस्थापन, वस्ति, आनाह, विरेचन कर्म, मुख रोग, नेत्र रोग, अतिसार, मूत्राघात, कृमिरोग,हृदय रोग, कैंसर, टीबी, पीलिया, मिर्गी, हिस्टिरिया जैसे घातक रोगों में भी प्रभावी बताया जाता है। इस तरह से गोमूत्र सिर्फ इंसानों के लिए ही नहीं बल्कि प्रकृति के लिए भी बहुत ही लाभकारी है। आज के आधुनिक दौर में भी गौमूत्र को एक प्रभावी कीटाणुनाशक माना जा रहा है। इसी तर्ज पर कई कंपनियों ने गौमूत्र से कैमिकमुक्त फिनाइल भी तैयार कर दिया है।
किसान गोबर से बने इन उत्पादों का व्यवसाय करके कुछ ही समय में अमीर बन सकते हैं

किसान गोबर से बने इन उत्पादों का व्यवसाय करके कुछ ही समय में अमीर बन सकते हैं

आपकी जानकारी के लिए बतादें कि बाजार में धूपबत्ती की भांति इस वक्त गोबर से बने दिये भी खूब बिक रहे हैं। सबसे खास बात यह है, कि गोबर से निर्मित दिये भारत समेत विदेशों में भी ऑनलाइन माध्यम से विक्रय किए जा रहे हैं। फिलहाल, दुनियाभर में किसान खेती से हटकर विभिन्न प्रकार के व्यापार कर रहे हैं। हालांकि, यह समस्त व्यापार कृषि एवं पशुपालन से ही संबंधित हैं। आज हम आपको गाय भैसों के गोबर से होने वाले ये बिजनेस आइडियाज देंगे, जो आपको कुछ ही समयांतराल में अमीर बना देंगे। सबसे खास बात यह है, कि इन कारोबारों को शुरू करने के लिए आपको काफी अधिक पूंजी की आवश्यकता नहीं है।

गोबर से निर्मित धूपबत्ती

गोबर से तैयार की गई धूपबत्ती इस समय बाजार में आम धूपबत्तियों और अगरबत्तियों से कहीं अधिक बिकती हैं। दरअसल, गाय के गोबर को काफी ज्यादा पवित्र माना जाता है, इसका उपयोग हिंदू धर्म को मानने वाले लोग अपनी पूजा पाठ वाली जगह पर भी करते हैं। यही कारण है, कि गाय के गोबर से निर्मित अगरबत्ती बाजार में बड़ी ही तीव्रता से बिक रही है। सबसे खास बात यह है, कि बिजनेस आप बड़ी सुगमता से घर पर भी चालू कर सकते हैं।

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गोबर से निर्मित दिये

धूपबत्ती की भांति इस समय गोबर से निर्मित दिये भी बाजार में अत्यधिक बिक रहे हैं। सबसे खास बात यह है, कि गोबर से निर्मित दिये भारत के अलावा विदेशों में भी ऑनलाइन माध्यम से बिक रहे हैं। इस व्यवसाय को भी आप सहजता से अपने घर में ही चालू कर सकते हैं। इसके लिए आपको सर्व प्रथम गाय के गोबर को सुखा कर उसका पाउडर बना लेना है, उसके पश्चात उसमें गोंद मिलाकर दिये के शेप में उसे ढाल लेना है। दो चार दिनों तक के लिए उसको धूप में रख कर सुखाने के पश्चात आप सहजता से उत्तम कीमत पर उसकी बाजार में बिक्री कर सकते हैं।

गोबर से निर्मित गमलों का व्यवसाय

जैसा कि हम जानते हैं, कि बारिश का मौसम चल रहा है, ऐसे में गमलों की मांग काफी ज्यादा है। लोग अब हरियाली की तरफ दौड़ रहे हैं। इस गमले की सबसे मुख्य बात यह है, कि इसमें पौधे बड़ी ही तीव्रता से बड़े होते हैं और जब ये गमला गलने लगता है, तो उसे खाद के रूप में भी उपयोग कर लिया जाता है। यही कारण है, कि फिलहाल बाजार में इसकी मांग काफी बढ़ गई है। इस प्रकार के गमले इस समय बाजार में 50 से 100 रुपये के बिक रहे हैं।

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गोकाष्ठ लकड़ी का व्यवसाय

गोकाष्ठ एक ऐसी वस्तु है, जिसका उपयोग दाह संस्कार में किया जाता है। दरअसल, हिंदू धर्म में जब कोई इंसान मरता है, तो उसका दाह संस्कार किया जाता है। मतलब की उसके शरीर को जलाया जाता है। अब ऐसी स्थिति में इस क्रिया के लिए लकड़ियों की काफी जरूरत होती है। इसी कारण से प्रति वर्ष लाखों वृक्ष कट जाते हैं। परंतु, यदि ये क्रिया गोकाष्ठ से होने लगे तो धरती के लाखों वृक्ष प्रति वर्ष बच जाएंगे। सबसे खास बात यह है, कि गोष्ठ बनाने हेतु आप 50000 तक में एक मशीन ला सकते हैं और फिर उससे अपना व्यवसाय शुरू कर सकते हैं।

गोबर से खाद का व्यवसाय

गोबर एक प्रकार का जैविक खाद है। गांवों में आज भी किसान गोबर का उपयोग खाद के तौर पर करते हैं। यदि आप इस चीज का व्यवसाय चालू करते हैं, तो देखते ही देखते कुछ ही दिनों में आप धनी बन सकते हैं। दरअसल, इस समय शहरों के अंदर लोग अपनी बालकनी को गमलों से भर रहे हैं। साथ ही, उन गमलों में लगे पौधों को बड़ा करने हेतु वह जैविक खाद का उपयोग कर रहे हैं। इस वजह से यदि आप इस व्यवसाय में दांव लगाते हैं, तो निश्चित तौर पर आप सफल रहेंगे।
किसान शिवकुमार अपनी खेती में खाद के रूप में गोबर और गोमूत्र का इस्तेमाल करते हैं

किसान शिवकुमार अपनी खेती में खाद के रूप में गोबर और गोमूत्र का इस्तेमाल करते हैं

किसान शिवकुमार ने अपने गांव में 5 बीघे जमीन पर लौकी और तोरई की खेती कर रखी है. उनका कहना है कि वे काफी सालों से सब्जी की खेती कर रहे हैं और खाद के रूप में सिर्फ गोबर और गोमूत्र का ही उपयोग करते हैं। ज्यादातर किसानों का मानना है, कि रासायनिक खाद का इस्तेमाल करने पर ही वह ज्यादा उत्पादन ले सकते हैं। परंतु, इस तरह की कोई बात नहीं है। यदि किसान भाई जैविक ढ़ंग से खेती करते हैं, तब भी वह बेहतरीन आमदनी कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें उर्वरक के तौर पर गोबर और वर्मी कंपोस्ट का उपयोग करना पड़ेगा। अब ऐसे भी विश्व आहिस्ते-आहिस्ते ऑर्गेनिक खेती की ओर बढ़ रहा है। जैविक विधि से पैदा किए गए फल और सब्जियों का भाव भी काफी ज्यादा होता है। विशेष बात यह है, कि जैविक विधि से खेती करने के लिए सरकार किसानों को अपने स्तर से प्रोत्साहित भी करती है। जानकारी के लिए बतादें, कि भारत में बहुत सारे किसान हैं, जो जैविक तरीके से सब्जियों की खेती कर बेहतरीन आमदनी कर रहे हैं।

 

किसान शिवकुमार कहाँ के रहने वाले हैं

भारत के ऐसे ही किसानों में से एक शिवकुमार हैं। यह उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में मौजूद स्याना तहसील के निवासी हैं। शिवकुमार अपने गांव गिनौरा नंगली में विगत कई वर्षों से जैविक विधि से सब्जियों का उत्पादन कर रहे हैं। वह लौकी एवं तोरई की फसल पैदा कर रहे हैं। विशेष बात यह है, कि शिवकुमार अपने खेत में खाद स्वरूप गाय के गोबर एवं गोमूत्र का उपयोग करते हैं। यह सब्जी विक्रय करने समेत गांव के लोगों को निः शुल्क हरी-हरी सब्जियां भी देते हैं।

 

किसान शिवकुमार ने इतने बीघे भूमि पर खेती कर रखी है

किसान शिवकुमार ने खुद के गांव में स्वयं की 5 बीघे भूमि पर लौकी और तोरई की खेती कर रखी है। उनका मानना है, कि वह काफी वर्षों से सब्जी की खेती कर रहे हैं और खाद के तौर पर केवल गोबर अथवा गोमूत्र का इस्तेमाल ही करते हैं। वह अपनी फसलों के ऊपर कभी भी कीटनाशकों एवं रासायनिक खादों का छिड़काव नहीं करते हैं। इसके चलते इनकी सब्जियां शीघ्रता से क्षतिग्रस्त नहीं होती हैं। साथ ही, स्वाद भी काफी उत्तम होता है। 

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गोबर का उर्वरक स्वरूप उपयोग बढ़ाऐगा पैदावार

शिवकुमार के अनुसार, गाय के मूत्र एवं गोबर का उर्वरक के तौर पर उपयोग करने पर उत्पादन बढ़ जाता है। साथ ही, ऑर्गेनिक सब्जियों की बाजार में भी काफी ज्यादा मांग होती है। यदि किसान भाई जैविक विधि से सब्जी की खेती करते हैं, तो उनको कम खर्चा में ज्यादा मुनाफा मिलेगा। उन्होंने बताया है, कि तोरई और लौकी की बुवाई करने से पूर्व खेत में गड्डा खोद कर के गोबर और गोमूत्र से खाद निर्मित की जाती है। इसके बाद बीजों की बुवाई होती है। शिवकुमार ने कहा है, कि बीज अंकुरित हो जाने के पश्चात दो से तीन दिन के समयांतराल पर गोमूत्र से सिंचाई की जाती है। इससे पौधों पर कीटों का आक्रमण नहीं होता है। साथ ही, बेहतरीन उत्पादन भी प्राप्त होता है।

छत्तीसगढ़ सरकार गोबर के व्यवसाय को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन दे रही है

छत्तीसगढ़ सरकार गोबर के व्यवसाय को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन दे रही है

आज के दौर में गोबर का व्यवसाय किसानों व आम जनता के लिए काफी ज्यादा किफायती सिद्ध हो रहा है। इस कारोबार से कृषक प्रति माह बेहतरीन आमदनी कर रहे हैं। आज के आधुनिक दौर में लोग नौकरी सहित अपना स्वयं का एक छोटा-सा व्यवसाय कर रहे हैं। जिससे कि वह अपनी आमदनी को अधिक कर सकें। इसके लिए वह विभिन्न प्रकार के कार्यों को करते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं व्यवसाय के लिए सरकार की ओर से भी पूरी मदद प्राप्त होती है। यदि आप भी व्यवसाय करने के विषय में सोच रहे हैं, तो आपको एक बार इस लेख को अवश्य पढ़ना चाहिए।

सरकार पशुपालक व किसानों से 10 रुपए प्रति किलो गोबर खरीदती है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि छत्तीसगढ़ के बहुत सारे लोग गोबर का सही ढ़ंग से उपयोग कर रहे हैं। साथ ही, इससे वह प्रति माह हजारों की आमदनी करते हैं। दरअसल, यहा के अधिकांश किसान भाई
प्राकृतिक खेती (Natural farming) करते हैं। साथ ही, सरकार के द्वारा भी इस खेती को ज्यादा करने पर सबसे ज्यादा जोर दिया जाता है। इसके लिए सरकार ने न्याय योजना की शुरुआत की है। इसमें ग्रामीण लोगों से 2 रुपए प्रति किग्रा की दर से गोबर की खरीद की जाती है। परंतु, वहीं यदि हम छत्तीसगढ़ राज्य की गोबर अर्थव्यवस्था की बात करें, तो सरकार की इस योजना के अंतर्गत किसानों और पशुपालकों से गोबर 10 रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से खरीदा जाता है। इनसे खरीदा गया गोबर विभिन्न प्रकार के कार्यों में उपयोग किया जाता हैं।

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गोबर का पेंट आजकल काफी चलन में आता जा रहा है

छत्तीसगढ़ में इस वक्त गोबर से पेंट निर्मित करने का व्यवसाय बहुत ही तीव्रता से फैल रहा है। अधिकांश लोग इसे अपना रहे हैं। बतादें, कि सरकार के द्वारा खरीदे गए गोबर से भी पेंट निर्मित करने का कार्य किया जाता है। यदि देखा जाए तो बाजार में इस पेंट की मांग भी काफी ज्यादा हो रही है।

गोबर से पेंट बनाने की योजना को सरकार ने दिया बढ़ावा

छत्तीसगढ़ सरकार राज्य में पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए एक पहल शुरू की है। दरअसल, राज्य में पशुधन के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए स्थापित गौठान में गोबर से पेंट निर्मित करने की योजना को तीव्रता के साथ आगे बढ़ाने पर सरकार आगे बढ़ रही है। बतादें, कि यह पेंट पूर्णतय प्राकृतिक है। इससे किसी भी प्रकार की कोई हानि नहीं देखने को मिलती है।

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किसान गोबर से बने इन उत्पादों का व्यवसाय करके कुछ ही समय में अमीर बन सकते हैं प्राप्त जानकारी के अनुसार, गोबर का पेंट बाजार में मिलने वाले पेंट की तुलना में काफी सस्ता और फायदेमंद है। इस पेंट को अपने घर पर करने से आपका घर गर्मी के मौसम में ठंडा बना रहेगा। साथ ही, यह अच्छी सुगंध भी प्रदान करेगा। इसके अतिरिक्त इस पेंट से आपके घर में कीड़े-मकोडे भी शीघ्रता से नहीं आते हैं। राज्य में अब तक 2 लाख 66 हजार 155 लीटर से भी ज्यादा प्राकृतिक पेंट का उत्पादन किया गया है। इस राज्य के ग्रामीण किसान और आम जनता इस गोबर का कारोबार करते हैं। उन्हें 4.15 करोड़ रुपये की आमदनी भी अर्जित हो चुकी है।

गोबर की बिक्री से कमाऐं हजारों-लाखों

यदि आप चाहें तो स्वयं भी गोबर के कारोबार को चालू कर प्रति माह लाखों की आमदनी अर्जित कर सकते हैं। इसके लिए आपको गोबर से निर्मित अपने समस्त उत्पादों जैसे कि गोबर की खाद, गोबर का पेंट आदि को या तो सरकार को बेचना होगा या फिर बाजार में भी आप इसे बेच सकते हैं, जिसकी आपको काफी अच्छी कीमत भी आसानी से मिल जाएगी।
महिला डेयरी किसान कुलदीप कौर के बायोगैस प्लांट से पूरे गॉव का चूल्हा फ्री में जलता है

महिला डेयरी किसान कुलदीप कौर के बायोगैस प्लांट से पूरे गॉव का चूल्हा फ्री में जलता है

वर्तमान में इंडियन डेयरी एसोसिएशन ने रोपड़, पंजाब की मूल निवासी कुलदीप कौर को डेयरी के क्षेत्र में अच्छे काम के लिए सम्मानित किया है। कुलदीप के डेयरी फार्म पर कई कॉलेज के छात्र पढ़ाई करने भी आते हैं। 

साथ ही, दूध का काम शुरू करने वाले कुलदीप कौर से सलाह-मशबिरा करने और फार्म को देखने भी आते हैं।  

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि रोपड़, पंजाब के बहादुरपुर गांव में हर एक घर का चूल्हा, फ्री में जलता है। बतादें, कि महज 100 रुपये महीने के खर्च पर दिन में तीन बार चूल्हा जलता है। 

हर घर से 100 रुपये महीना भी रखरखाव के नाम पर लिया जाता है। ये सब कुलदीप कौर की डेयरी के माध्यम से संभव हुआ है। 

कुलदीप कौर गांव के करीब 70 घरों को अपने डेयरी फार्म पर बने बायो गैस प्लांट से गैस सप्लाई करती हैं। लेकिन, इसके बदले कुलदीप किसी भी घर से एक रुपया तक नहीं लेती हैं।

प्लांट के बेहतर संचालन के लिए टेक्नीशियन भी रखा है

प्लांट के सुचारू संचालन के लिए एक टेक्नीशियन नियुक्त किया गया है। इस टेक्नीशियन को हर घर से 100 रुपये प्रदान किए जाते हैं। 

कुलदीप का कहना है, कि जब हमने डेयरी शुरू की तो हमारा उद्देश्य था, कि इसका फायदा हमारे गांव के लोगों को भी मिले। केवल यही सोचकर हमने बायो गैस गांव भर के लिए निःशुल्क कर दी है।

जानिए कुलदीप कोर की डेयरी की शुरुआत के बारे में

इस किसान की कहानी बेहद उत्साहित करने वाली है। कुलदीप कौर के बेटे गगनदीप का कहना है, कि लगभग 10 वर्ष पूर्व घर में ये फैसला हुआ कि डेयरी यानी पशुपालन शुरू किया जाए। 

जब बात शुरू करने की आई तो घर के हर एक सदस्यौ ने अपनी जमा पूंजी में से कुछ ना कुछ रकम मां को दी। ताई, चाचा सभी ने इसमें सहयोग किया। इस तरह से पहले पांच गाय खरीदी गईं। 

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जब काम बढ़ने लगा तो गाय की संख्या बढ़ानी भी शुरू कर दी। पहले हमारे पास एक ही नस्ल की गाय थी। लेकिन, फिर हमने इधर-उधर से जानकारी एकत्रित करने के बाद अपने फार्म में एचएफ, जर्सी और साहीवाल गाय रखनी चालू कर दीं।

दूध के अतिरिक्त गोबर से भी अच्छी आय हो रही है

गगनदीप का कहना है, कि बायो गैस प्लांट पर गैस तैयार करने के बाद जो तरल गोबर बचता है, उसे हम ट्रॉली के हिसाब से किसानों को बेच देते हैं। 

हर रोज हमारे प्लांट से पांच ट्रॉली गोबर निकलता है। एक ट्रॉली 500 रुपये की जाती है। इस प्रकार हमें ढाई हजार रुपये रोजाना की इनकम गोबर से हो जाती है। 

इसके अतिरिक्त हमारे खेत में अब 140 गाय हैं। सभी गाय से रोजाना 950 से एक हजार लीटर तक दूध प्राप्त हो जाता है। इस पूरे दूध को हम पंजाब की वेरका डेयरी को बेच देते हैं।

कुलदीप कोर ने डेयरी शुरू करने वालों को दी सलाह

सफलता पूर्वक डेयरी संचालन करने वालीं कुलदीप कौर का कहना है, कि अगर कोई भी डेयरी खोलना चाहता है, तो उसे सबसे पहले इसका प्रशिक्षण लेना चाहिए। 

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गाय-भैंस की अच्छी ब्रीड का ही चयन करना चाहिए। इसके बाद हर समय यह प्रयास होना चाहिए, कि दूध उत्पादन की लागत को किस तरह कम किया जाए। जैसे हमने अपने फार्म पर ही चारा बनाना शुरू कर दिया। 

इस प्रकार से हमें प्रति किलो चारे पर पांच रुपये की बचत होने लगी। साथ ही, दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए गाय-भैंस की खुराक पर ध्यान दें ना की बाजार में बिकने वाली बेवजह की चीजों पर।